1 |
“इफिसुसक मण्डलीक दूत केँ ई लिखह, ओ जे अपन दहिना हाथ मे सातो तारा धयने छथि आ दीप राखऽ वला सोनाक सातो लाबनिक बीच चलैत-फिरैत छथि से ई कहैत छथि— |
2 |
हम अहाँक काज सभ सँ, अहाँक परिश्रम आ अहाँक सहनशीलता सँ परिचित छी। हम जनैत छी जे अहाँ दुष्ट लोक सभ केँ बरदास्त नहि करैत छी। जे सभ अपना केँ मसीह-दूत कहैत अछि मुदा अछि नहि, तकरा सभ केँ अहाँ जाँच कयने छी आ झुट्ठा पौने छी। |
3 |
अहाँ सभ धैर्य रखने छी, हमरा नामक कारणेँ कष्ट सहने छी आ निराश नहि भेलहुँ। |
4 |
मुदा हमरा अहाँक विरोध मे ई कहबाक अछि जे अहाँ अपन पहिलुका प्रेम छोड़ि देने छी। |
5 |
एहि लेल मोन राखू जे कतेक ऊँच स्थान सँ अहाँ खसल छी। आब अहाँ अपना पापक लेल पश्चात्ताप कऽ कऽ हृदय-परिवर्तन करू आ पहिने जकाँ अपन आचरण राखू। जँ से नहि करब तँ हम आबि कऽ अहाँक लाबनि अपन स्थान पर सँ हटा देब। |
6 |
तैयो एतेक अवश्य अछि जे हमरे जकाँ अहूँ निकोलायी पंथक लोक सभक काज सभ सँ घृणा करैत छी। |
7 |
जकरा सभ केँ कान होइक, से सभ सुनि लओ जे प्रभुक आत्मा मण्डली सभ केँ की कहैत छथि। जे सभ विजय प्राप्त करत तकरा सभ केँ हम परमेश्वरक स्वर्ग-बगीचा मेहक जीवनक गाछक फल खयबाक अधिकार देबैक। |
8 |
“स्मुरनाक मण्डलीक दूत केँ ई लिखह, जे पहिल आ अन्तिम छथि, जे मरि गेल छलाह आ आब जीबि उठल छथि से ई कहैत छथि— |
9 |
हम अहाँक कष्ट आ गरीबी सँ परिचित छी। मुदा वास्तव मे अहाँ धनवान छी! और हम इहो जनैत छी जे, ओ सभ जे यहूदी भऽ कऽ अपना केँ परमेश्वरक लोक कहैत अछि, मुदा अछि नहि, से सभ अहाँक कतेक बदनामी करैत अछि। ओ सभ शैतानक समूह अछि। |
10 |
आबऽ वला समय मे अहाँ जे कष्ट सहऽ वला छी, ताहि सँ नहि डेराउ। देखू, शैतान अहाँ सभ केँ जँचबाक लेल अहाँ सभ मे सँ कतेको गोटे केँ जहल मे राखि देत। एहि तरहेँ अहाँ सभ केँ दस दिन तक कष्ट भोगऽ पड़त। प्राणो देबऽ पड़य, ताहि समय तक विश्वास मे स्थिर रहू, तखन हम अहाँ सभ केँ जीवनक मुकुट प्रदान करब। |
11 |
जकरा सभ केँ कान होइक, से सभ सुनि लओ जे प्रभुक आत्मा मण्डली सभ केँ की कहैत छथि। जे सभ विजय प्राप्त करत तकरा सभ केँ दोसर मृत्यु सँ कोनो हानि नहि होयतैक। |
12 |
“पिरगमुनक मण्डलीक दूत केँ ई लिखह, जिनका लग तेज दूधारी तरुआरि छनि, से ई कहैत छथि— |
13 |
हम ई जनैत छी जे अहाँ ओतऽ रहैत छी जतऽ शैतानक सिंहासन अछि। तैयो अहाँ सभ हमरा नाम पर स्थिर छी आ अहाँ सभ ओहू समय मे हमरा पर विश्वास कयनाइ नहि छोड़लहुँ जहिया अन्तिपास, हमर विश्वस्त गवाह अहाँ सभक शहर जे शैतानक निवास स्थान अछि, ततऽ मारल गेलाह। |
14 |
मुदा हमरा अहाँक विरोध मे किछु बात सभ कहबाक अछि, किएक तँ अहाँ सभ मे किछु एहन लोक अछि जे बिलामक शिक्षा केँ मानैत अछि। बिलाम तँ प्राचीन समय मे राजा बालाक केँ सिखौलक जे इस्राएली सभ केँ फुसलाउ जाहि सँ ओ सभ मूर्ति सभ पर चढ़ाओल गेल वस्तु सभ खा कऽ आ एक-दोसराक संग अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध राखि कऽ पाप मे फँसि जाय। |
15 |
एहि तरहेँ अहूँ सभ मे किछु एहन लोक अछि जे सभ निकोलायी पंथक शिक्षा केँ मानैत अछि। |
16 |
एहि लेल अपना पापक लेल पश्चात्ताप कऽ कऽ हृदय-परिवर्तन करू! नहि तँ हम जल्दी अहाँ सभक ओतऽ आयब आ अपन मुँहक तरुआरि सँ ओकरा सभ सँ युद्ध करबैक। |
17 |
जकरा सभ केँ कान होइक से सभ सुनि लओ जे प्रभुक आत्मा मण्डली सभ केँ की कहैत छथि। जे सभ विजय प्राप्त करत तकरा सभ केँ हम ओहि विशेष रोटी मे सँ खुअयबैक जे एखन नुकाओल अछि। ओकरा सभ मे सँ प्रत्येक गोटे केँ हम एक उज्जर पाथर सेहो देबैक जाहि पर एक नव नाम लिखल रहतैक जकरा पाबऽ वला केँ छोड़ि आरो केओ नहि जानि पाओत। |
18 |
“थूआतीराक मण्डलीक दूत केँ ई लिखह, परमेश्वरक पुत्र, जिनकर आँखि आगि सन धधकैत छनि आ जिनकर पयर सुन्दर पित्तरि जकाँ चमकैत छनि, से ई कहैत छथि— |
19 |
हम अहाँक काज सभ, अहाँक प्रेम आ विश्वास, अहाँक सेवा आ धैर्य केँ जनैत छी। हम इहो जनैत छी, जे अहाँ शुरू मे जतेक करैत छलहुँ, ताहि सँ बेसी एखन करैत छी। |
20 |
मुदा हमरा अहाँक विरोध मे ई कहबाक अछि जे, अहाँ ओहि स्त्री, इजेबेल केँ अपना बीच रहऽ देने छी। ओ अपना केँ परमेश्वर सँ विशेष सम्बाद पौनिहारि कहैत अछि आ अपन शिक्षा द्वारा हमर सेवक सभ केँ दोसराक संग अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध रखबाक लेल और मुरुत पर चढ़ाओल गेल वस्तु सभ खयबाक लेल बहकबैत अछि। |
21 |
हम ओकरा अवसर देलिऐक जे ओ अपना कुकर्मक लेल पश्चात्ताप कऽ कऽ हृदय-परिवर्तन करय आ कुकर्म केँ छोड़य, मुदा ओ नहि चाहैत अछि। |
22 |
तेँ आब हम ओकरा दुःख-बिमारीक ओछायन पर पटकि देबैक आ जे सभ ओकरा संग कुकर्म करैत अछि, से सभ जँ हृदय-परिवर्तन कऽ ओकरा संग कुकर्म कयनाइ नहि छोड़त, तँ हम ओकरा सभ पर घोर विपत्ति आनि देबैक। |
23 |
हम ओकर धिआ-पुता सभ केँ महामारी सँ मारि देबैक। एहि तरहेँ सभ मण्डली केँ बुझऽ मे आबि जयतैक जे हृदय आ मोन केँ थाह पाबऽ वला हमहीं छी, आ हम अहाँ सभ मे सँ प्रत्येक केँ ओकर काजक अनुसार प्रतिफल देबैक। |
24 |
मुदा हम थूआतीराक बाँकी लोक सभ केँ, अर्थात् अहाँ सभ जे सभ एहि गलत शिक्षा केँ नहि मानैत छी आ ओहि बात सभ केँ नहि सिखने छी, जे शैतानक “रहस्यमय बात” सभ कहबैत अछि, अहाँ सभ सँ हमर कथन ई अछि—हम अहाँ सभ पर आरो कोनो भार नहि राखब— |
25 |
मात्र ई जे, जे बात अहाँ सभ लग अछि, ताहि मे हमरा अयबा धरि दृढ़ रहू। |
26 |
जे सभ विजय प्राप्त करत और अन्त धरि हमर इच्छा पूरा करैत रहत, तकरा सभ केँ हम तहिना जाति-जातिक लोक सभ पर अधिकार देबैक, |
27 |
जहिना हमरो अपना पिता सँ अधिकार प्राप्त भेल अछि। “ओ ओकरा सभ पर लोहाक राजदण्ड सँ शासन करताह आ ओकरा सभ केँ कुम्हारक बर्तन जकाँ चकना-चूर कऽ देताह।” |
28 |
हम ओकरा सभ केँ भोरक तारा सेहो प्रदान करबैक। |
29 |
जकरा सभ केँ कान होइक से सभ सुनि लओ जे प्रभुक आत्मा मण्डली सभ केँ की कहैत छथि। |
Maithili Bible 2010 |
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