1 |
तेँ, यौ भाइ लोकनि, हम चाहैत छी जे अहाँ सभ अपना सभक प्राचीन समयक पुरखा लोकनिक बारे मे बुझी जे, जे सभ मूसाक संग मिस्र देश सँ निकललाह ओ सभ गोटे ओहि मेघक छाया मे चललाह जे रस्ता देखबैत संग-संग चलैत छलनि, आ ओ सभ केओ लाल सागरक बीच बाटे पार भेलाह। |
2 |
एहि तरहेँ बुझल जा सकैत अछि जे ओ सभ केओ ओहि मेघक छाया मे चलि कऽ आ मूसाक पाछाँ समुद्र मे जा कऽ एहि रूप मे “बपतिस्मा” स्वीकार करैत मूसा मे सहभागी बनलाह। |
3 |
सभ केओ एके प्रकारक आत्मिक भोजन कयलनि, |
4 |
आ एके प्रकारक आत्मिक जल पिलनि, किएक तँ ओ सभ ओहि आत्मिक चट्टान सँ बहऽ वला जल पिबैत छलाह जे हुनका सभक संग-संग चलैत छलनि, और ओ चट्टान छलाह मसीह। |
5 |
ई सभ बात होइतो हुनका सभ मे सँ अधिकांश लोक सँ परमेश्वर अप्रसन्न भेलाह और ओ सभ निर्जन क्षेत्र मे नष्ट भऽ गेल। |
6 |
ई घटना सभ अपना सभक लेल उदाहरणक रूप मे चेतावनी भेल जाहि सँ अपना सभ हुनका सभ जकाँ अधलाह बात सभक लालसा नहि करी। |
7 |
हुनका सभ मे सँ किछु लोक जकाँ अहाँ सभ मूर्तिक पूजा कयनिहार नहि बनू, जिनका सभक विषय मे धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे, “लोक सभ खयबाक-पिबाक लेल बैसल आ मौज-मजा करबाक लेल उठल।” |
8 |
अपना सभ अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध नहि राखी, जेना कि हुनका सभ मे सँ किछु लोक कयलनि आ एके दिन मे तेइस हजार मरि गेलाह। |
9 |
अपना सभ प्रभुक परीक्षा नहि करियनि, जेना कि हुनका सभ मे सँ किछु लोक कयलनि आ साँप सभक कटनाइ सँ मारल गेलाह। |
10 |
अहाँ सभ कुड़बुड़ाउ नहि, जेना कि हुनका सभ मे सँ किछु लोक कयलनि आ विनाशक दूत द्वारा मारल गेलाह। |
11 |
ई सभ घटना उदाहरणक लेल हुनका सभ पर बितलनि, आ अपना सभ केँ चेतावनी देबाक लेल लिखल गेल अछि जे सभ संसारक अन्त होमऽ-होमऽ वला समय मे जीबि रहल छी। |
12 |
तेँ जे केओ अपना केँ मजगूत बुझैत अछि से सावधान रहओ जे कहीं खसि ने पड़य। |
13 |
अहाँ सभ कहियो कोनो एहन परीक्षा मे नहि पड़लहुँ जे मनुष्य सभ केँ नहि होइत रहैत अछि। परमेश्वर विश्वासयोग्य छथि। ओ अहाँ सभ केँ एहन परीक्षा मे नहि पड़ऽ देताह जे अहाँ सभक सहनशक्ति सँ बाहर होअय। ओ परीक्षाक समय मे तकरा सहबाक साहस दैत अहाँ सभ केँ पार कऽ निकलबाक उपाय सेहो उपलब्ध करौताह। |
14 |
तेँ, यौ हमर प्रिय भाइ लोकनि, अहाँ सभ मूर्तिक पूजा कयनाइ सँ दूर रहू। |
15 |
हम अहाँ सभ केँ समझदार बुझि ई बात कहि रहल छी। हम जे कहैत छी तकर अहाँ सभ स्वयं जाँच करू जे ओ सही अछि वा नहि। |
16 |
प्रभु-भोजक ओ आशिषक बाटी, जकरा लेल अपना सभ प्रभु केँ धन्यवाद दैत छी, की ताहि मे सँ पिबैत अपना सभ मसीहक बहाओल खून मे सहभागी नहि छी? आ ओ रोटी, जकरा अपना सभ तोड़ैत छी, की ताहि मे सँ खा कऽ अपना सभ मसीहक देह मे सहभागी नहि छी? |
17 |
रोटी एकेटा अछि, एहि कारणेँ अपना सभ अनेक होइतो एक देह छी, किएक तँ अपना सभ ओहि एकेटा रोटी मे सँ खाइत छी। |
18 |
इस्राएली समाजक बारे मे सोचू—की बलि-भोज खयनिहार लोक ओहि परमेश्वरक सेवा मे सहभागी नहि अछि जिनकर वेदी पर बलि चढ़ाओल गेल अछि? |
19 |
तखन हम कहि की रहल छी? की ई जे मुरुत पर चढ़ाओल वस्तुक कोनो विशेषता अछि? वा की ई जे मुरुतक कोनो महत्व अछि? |
20 |
नहि! हमर कहबाक अर्थ ई अछि जे, जे बलि मुरुत पर चढ़ाओल जाइत अछि से परमेश्वर केँ नहि, बल्कि दुष्टात्मा सभ केँ चढ़ाओल जाइत अछि, आ हम नहि चाहैत छी जे अहाँ सभ दुष्टात्मा सभक सहभागी बनू। |
21 |
अहाँ सभ प्रभुक बाटी आ दुष्टात्मा सभक बाटी, दूनू मे सँ नहि पिबि सकैत छी। अहाँ सभ प्रभुक भोज आ दुष्टात्मा सभक भोज, दूनू मे सहभागी नहि बनि सकैत छी। |
22 |
की अपना सभ प्रभुक मोन मे डाह उत्पन्न कराबऽ चाहैत छी? की अपना सभ हुनका सँ शक्तिशाली छी? |
23 |
“सभ किछु करबाक स्वतन्त्रता अछि”—मुदा सभ किछु हितकर नहि अछि। “सभ किछु करबाक स्वतन्त्रता अछि”—मुदा सभ किछु लाभदायक नहि अछि। |
24 |
सभ केँ अपन नहि, बल्कि दोसर लोकक हितक ध्यान रखबाक चाही। |
25 |
बजार मे जे माँसु बिकाइत अछि तकरा अहाँ निश्चिन्ततापूर्बक खा सकैत छी। ओ माँसु चढ़ाओल अछि वा नहि तकर पूछ-ताछ नहि करऽ लागू, |
26 |
किएक तँ धर्मशास्त्र मे लिखल अछि जे “पृथ्वी आ ओहि परक जे किछु अछि से सभ प्रभुक छनि।” |
27 |
जँ अविश्वासी सभ मे सँ केओ अहाँ केँ निमन्त्रण दय आ अहाँ जाय चाही तँ जाउ आ ओतऽ जे किछु अहाँ केँ परसल जाइत अछि तकरा निश्चिन्ततापूर्बक बिनु कोनो प्रश्न कयने खाउ। |
28 |
मुदा जँ केओ कहय जे, “ओ प्रसाद अछि,” तँ कहनिहारक हितक लेल आ जाहि सँ विवेक केँ हानि नहि पहुँचय ओ वस्तु नहि खाउ। |
29 |
हमर कहबाक अर्थ अहाँक विवेक सँ नहि, बल्कि ओहि दोसर आदमीक विवेक सँ अछि। किएक तँ हमर स्वतन्त्रता दोसराक विवेकक अनुसार किएक दोषी ठहरय? |
30 |
जँ हम धन्यवाद दऽ कऽ भोजन करैत छी तँ जाहि वस्तुक लेल हम परमेश्वर केँ धन्यवाद देने छी ताहि सँ हमर निन्दा किएक होअय? |
31 |
अहाँ सभ खाइ वा पिबी वा जे किछु करी, सभ किछु एहि लेल करू जाहि सँ परमेश्वरक महिमा प्रगट होनि। |
32 |
ककरो ठेस लगबाक कारण नहि बनू, ने यहूदी सभक लेल, ने आन जातिक लेल आ ने परमेश्वरक मण्डलीक लेल। |
33 |
तहिना हमहूँ अपना हितक लेल नहि, बल्कि दोसर लोक सभक हित केँ ध्यान मे राखि कऽ सभ बात मे सभ लोक केँ प्रसन्न करबाक प्रयत्न करैत छी जाहि सँ ओ सभ उद्धार पाबि सकय।
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Maithili Bible 2010 |
©2010 The Bible Society of India and WBT |
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1 कोरिन्थी 10:1 |
1 कोरिन्थी 10:2 |
1 कोरिन्थी 10:3 |
1 कोरिन्थी 10:4 |
1 कोरिन्थी 10:5 |
1 कोरिन्थी 10:6 |
1 कोरिन्थी 10:7 |
1 कोरिन्थी 10:8 |
1 कोरिन्थी 10:9 |
1 कोरिन्थी 10:10 |
1 कोरिन्थी 10:11 |
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1 कोरिन्थी 10:13 |
1 कोरिन्थी 10:14 |
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1 कोरिन्थी 10:16 |
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1 कोरिन्थी 10:18 |
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1 कोरिन्थी 10:22 |
1 कोरिन्थी 10:23 |
1 कोरिन्थी 10:24 |
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1 कोरिन्थी 10:32 |
1 कोरिन्थी 10:33 |
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1 कोरिन्थी 1 / 1को 1 |
1 कोरिन्थी 2 / 1को 2 |
1 कोरिन्थी 3 / 1को 3 |
1 कोरिन्थी 4 / 1को 4 |
1 कोरिन्थी 5 / 1को 5 |
1 कोरिन्थी 6 / 1को 6 |
1 कोरिन्थी 7 / 1को 7 |
1 कोरिन्थी 8 / 1को 8 |
1 कोरिन्थी 9 / 1को 9 |
1 कोरिन्थी 10 / 1को 10 |
1 कोरिन्थी 11 / 1को 11 |
1 कोरिन्थी 12 / 1को 12 |
1 कोरिन्थी 13 / 1को 13 |
1 कोरिन्थी 14 / 1को 14 |
1 कोरिन्थी 15 / 1को 15 |
1 कोरिन्थी 16 / 1को 16 |