लूका 17:20-37 |
20. फरिसी सभक ई पुछला पर जे परमेश्वरक राज्य कहिया आओत, यीशु उत्तर देलथिन, “परमेश्वरक राज्य ओहि तरहेँ नहि अबैत अछि जे आँखि सँ देखल जा सकय। |
21. केओ कहऽ वला नहि होयत जे, ‘देखू, एतऽ अछि,’ वा ‘ओतऽ अछि,’ कारण, परमेश्वरक राज्य अहाँ सभक बीच मे अछि ।” |
22. तखन ओ अपना शिष्य सभ केँ कहलथिन, “ओ समय आबि रहल अछि जखन अहाँ सभ केँ मनुष्य-पुत्रक युगक एको दिन देखबाक लेल बड़का इच्छा होयत, मुदा देखि नहि सकब। |
23. लोक अहाँ सभ केँ कहत जे, ‘ओतऽ छथि!’ वा ‘एतऽ छथि।’ मुदा नहि जाउ! ओकरा सभक पाछाँ नहि दौड़ू! |
24. कारण, मनुष्य-पुत्रक दिन जखन औतनि, तँ ओ बिजलोका जकाँ होयताह, जे चमकि कऽ आकाश केँ एक कात सँ दोसर कात तक इजोत कऽ दैत अछि। |
25. मुदा ओहि सँ पहिने ई आवश्यक अछि जे ओ बहुत दुःख भोगथि और एहि पीढ़ीक लोक द्वारा अस्वीकार कयल जाथि। |
26. “जहिना नूहक समय मे भेल, तहिना मनुष्य-पुत्रक अयबाक समय मे सेहो होयत। |
27. जाहि दिन नूह जहाज मे चढ़ि गेलाह, ताहि दिन धरि लोक सभ खाय-पिबऽ मे और विवाह करऽ-कराबऽ मे मस्त रहल आ तखन जल-प्रलय भेल और सभ केओ नष्ट भऽ गेल। |
28. “तहिना लूतक समय मे सेहो भेल। लोक सभ खाइत-पिबैत रहल, चीज-वस्तु बेचैत-किनैत रहल, बीया बाउग करैत रहल आ घर बनबैत रहल। |
29. मुदा जाहि दिन लूत सदोम नगर सँ बहरयलाह, ताही दिन आकाश सँ आगि और गन्धकक वर्षा भेल और सभ केओ नष्ट भऽ गेल। |
30. “जाहि दिन मनुष्य-पुत्र फेर प्रगट होयताह, ताहू दिन ठीक ओहिना होयत। |
31. ताहि दिन जँ केओ छत पर होअय और ओकर सामान घर मे, तँ ओ ओकरा लेबाक लेल नहि उतरओ। तहिना जे केओ खेत मे होअय, से घूमि कऽ नहि आबओ। |
32. लूतक घरवाली केँ मोन राखू। |
33. जे केओ अपन प्राण बचयबाक प्रयत्न करैत अछि, से ओकरा गमाओत, और जे केओ अपन प्राण गमबैत अछि से ओकरा सुरक्षित राखत। |
34. हम अहाँ सभ केँ कहैत छी, ओहि राति दू आदमी एक ओछायन पर सुतल रहत, एक लऽ लेल जायत, आ दोसर छोड़ि देल जायत। |
35. दूटा स्त्रीगण एक संग जाँत पिसैत रहत, एकटा लऽ लेल जायत, आ दोसर छोड़ि देल जायत। |
36. [दू आदमी खेत मे रहत, एक लऽ लेल जायत, आ दोसर छोड़ि देल जायत।] ” |
37. शिष्य सभ पुछलथिन, “प्रभु, ई कतऽ होयत?” ओ उत्तर देलथिन, “जतऽ लास पड़ल रहत, ततहि गिद्ध सभ जुटत।” |